"हल्दीघाटी शौर्य दिवस - 18 जून"
443 वर्ष पूर्व आज ही के दिन हुआ था हल्दीघाटी का महासंग्राम
हल्दीघाटी युद्ध के प्रत्येक वीर को हृदय से नमन.....
18 जून, 1576 को सूर्य प्रतिदिन की भाँति उदित हुआ; पर वह उस दिन कुछ अधिक लाल दिखायी दे रहा था। चूँकि उस दिन हल्दीघाटी में खून की होली खेली जाने वाली थी। एक ओर लोसिंग में अपने प्रिय चेतक पर सवार हिन्दुआ सूर्य महाराणा प्रताप देश की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए डटे थे, तो दूसरी ओर मोलेला गाँव में मुगलों का पिट्ठू मानसिंह पड़ाव डाले था।
सूर्योदय के तीन घण्टे बाद मानसिंह ने राणा प्रताप की सेना की थाह लेने के लिए अपनी एक टुकड़ी घाटी के मुहाने पर भेजी। यह देखकर राणा प्रताप ने युद्ध प्रारम्भ कर दिया। फिर क्या था; मानसिंह तथा राणा की सेनाएँ परस्पर भिड़ गयीं। लोहे से लोहा बज उठा। खून के फव्वारे छूटने लगे। चारों ओर लाशों के ढेर लग गये। भारतीय वीरों ने हमलावरों के छक्के छुड़ा दिये।
यह देखकर मुगल सेना ने तोपों के मुँह खोल दिये। ऊपर सूरज तप रहा था, तो नीचे तोपें आग उगल रही थीं। प्रताप ने अपने साथियों को ललकारा - साथियो, छीन लो इनकी तोपें। आज विधर्मियों की पूर्ण पराजय तक युद्ध चलेगा। धर्म व मातृभूमि के लिए मरने का अवसर बार-बार नहीं आता। स्वातन्त्र्य योद्धा यह सुनकर पूरी ताकत से शत्रुओं पर पिल पड़े।
राणा की आँखें युद्धभूमि में देश और धर्म के द्रोही मानसिंह को ढूँढ रही थीं। वे उससे दो-दो हाथकर धरती को उसके भार से मुक्त करना चाहते थे। चेतक भी यह समझ रहा था। उसने मानसिंह को एक हाथी पर बैठे देखा, तो वह उधर ही बढ़ गया। पलक झपकते ही उसने हाथी के मस्तक पर अपने दोनों अगले पाँव रख दिये।
राणा प्रताप ने पूरी ताकत से निशाना साधकर अपना भाला फेंका; पर अचानक महावत सामने आ गया। भाले ने उसकी ही बलि ले ली। उधर मानसिंह हौदे में छिप गया। हाथी बिना महावत के ही मैदान छोड़कर भाग गया। भागते हुए उसने अनेक मुगल सैनिकों को जहन्नुम भेज दिया।
मुगल सेना में इससे निराशा फैल गयी। तभी रणभूमि से भागे मानसिंह ने एक चालाकी की। उसकी सेना के सुरक्षित दस्ते ने ढोल नगाड़ों के साथ युद्धभूमि में प्रवेश किया और यह झूठा शोर मचा दिया कि बादशाह अकबर खुद लड़ने आ गये हैं। इससे मुगल सेना के पाँव थम गये। वे दुगने जोश से युद्ध करने लगे।
इधर राणा प्रताप घावों से निढाल हो चुके थे। मानसिंह के बच निकलने का उन्हें बहुत खेद था। उनकी सेना सब ओर से घिर चुकी थी। मुगल सेना संख्याबल में भी तीन गुनी थी। फिर भी वे पूरे दम से लड़ रहे थे।
ऐसे में यह रणनीति बनायी गयी कि पीछे हटते हुए मुगल सेना को पहाड़ियों की ओर खींच लिया जाये। इस पर कार्यवाही प्रारम्भ हो गयी। ऐसे समय में झाला मानसिंह ने आग्रहपूर्वक उनका छत्र और मुकुट स्वयं धारण कर लिया। उन्होंने कहा - महाराज, एक झाला के मरने से कोई अन्तर नहीं आयेगा। यदि आप बच गये, तो कई झाला तैयार हो जायेंगे;पर यदि आप नहीं बचे, तो देश किसके भरोसे विदेशी हमलावरों से युद्ध करेगा ?
छत्र और मुकुट के धोखे में मुगल सेना झाला से ही युद्ध में उलझी रही और राणा प्रताप सुरक्षित निकल गये। मुगलों के हाथ कुछ नहीं आया। इस युद्ध में राणा प्रताप और चेतक के कौशल का जीवन्त वर्णन पण्डित श्यामनारायण पाण्डेय ने अपने काव्य ‘हल्दीघाटी’ में किया है।
*"हल्दीघाटी के 443वें युद्ध दिवस पर शूरवीर धरतीपुत्रों को सत सत नमन "*
*"हल्दीघाटी युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने वाले प्रमुख मेवाड़ी योद्धा"*
1- *ग्वालियर के राजा रामशाह तोमर*
2- *कुंवर शालिवाहन तोमर (रामशाह तोमर के पुत्र व महाराणा प्रताप के बहनोई)*
3- *कुंवर भान तोमर (रामशाह तोमर के पुत्र)*
4- *कुंवर प्रताप तोमर (रामशाह तोमर के पुत्र)*
5- *भंवर धर्मागत तोमर (शालिवाहन तोमर के पुत्र)*
6- *दुर्गा तोमर (रामशाह तोमर के साथी)*
7- *बाबू भदौरिया (रामशाह तोमर के साथी)*
8- *खाण्डेराव तोमर (रामशाह तोमर के साथी)*
9- *बुद्ध सेन (रामशाह तोमर के साथी)*
10- *शक्तिसिंह राठौड़ (रामशाह तोमर के साथी)*
11- *विष्णुदास चौहान (रामशाह तोमर के साथी)*
12- *डूंगर (रामशाह तोमर के साथी)*
13- *कीरतसिंह (रामशाह तोमर के साथी)*
14- *दौलतखान (रामशाह तोमर के साथी)*
15- *देवीचन्द चौहान (रामशाह तोमर के साथी)*
16- *छीतर सिंह चौहान (हरिसिंह के पुत्र व रामशाह तोमर के साथी)*
17- *अभयचन्द्र (रामशाह तोमर के साथी)*
18- *राघो तोमर (रामशाह तोमर के साथी)*
19- *राम खींची (रामशाह तोमर के साथी)*
20- *ईश्वर (रामशाह तोमर के साथी)*
21- *पुष्कर (रामशाह तोमर के साथी)*
22- *कल्याण मिश्र (रामशाह तोमर के साथी)*
23- *बदनोर के ठाकुर रामदास राठौड़ (वीरवर जयमल राठौड़ के 7वें पुत्र) :- ये अपने 9 साथियों समेत काम आए |*
24- *बदनोर के कुंवर किशनसिंह राठौड़ (ठाकुर रामदास राठौड़ के पुत्र)*
25- *जालौर के मानसिंह सोनगरा चौहान (महाराणा प्रताप के मामा) :- ये अपने 11 साथियों समेत काम आए |*
26- *कान्ह/कान्हा (महाराणा प्रताप के भाई) :- इनके वंशज आमल्दा व अमरगढ़ में हैं |*
27- *कल्याणसिंह/कल्ला (महाराणा प्रताप के भाई)*
28- *कानोड़ के रावत नैतसिंह सारंगदेवोत*
29- *केशव बारठ (कवि) :- ये सोन्याणा वाले चारणों के पूर्वज थे |*
30- *जैसा/जयसा बारठ (कवि) :- ये भी सोन्याणा वाले चारणों के पूर्वज थे |*
31- *कान्हा सांदू (चारण कवि)*
32- *पृथ्वीराज चुण्डावत (पत्ता चुण्डावत के बड़े भाई)*
33- *आमेट के ठाकुर कल्याणसिंह चुण्डावत (वीरवर पत्ता चुण्डावत के पुत्र) - इनके पीछे रानी बदन कंवर राठौड़ सती हुईं | रानी बदन कंवर मेड़ता के जयमल राठौड़ की पुत्री थीं |*
34- *देसूरी के खान सौलंकी (ठाकुर सावन्त सिंह सौलंकी के पुत्र)*
35- *नीमडी के महेचा बाघसिंह राठौड़ कल्लावत (मल्लीनाथ के वंशज)*
36- *देवगढ़ के पहले रावत सांगा चुण्डावत :- ये वीरवर पत्ता चुण्डावत के पिता जग्गा चुण्डावत के भाई थे | रावत सांगा देवगढ़ वालों के मूलपुरुष थे |*
37- *देवगढ़ के कुंवर जगमाल चुण्डावत (रावत सांगा चुण्डावत के पुत्र)*
38- *शंकरदास जैतमालोत राठौड़ (ठि. बनोल)*
39- *रामदास जैतमालोत राठौड़ (ठि. बनोल)*
40- *केनदास जैतमालोत राठौड़ (ठि. बनोल)*
41- *नरहरीदास जैतमालोत राठौड़ (ठि. बनोल) :- ये शंकरदास राठौड़ के पुत्र थे |*
42- *नाहरदास जैतमालोत राठौड़ (ठि. बनोल) :- ये शंकरदास राठौड़ के पुत्र थे |*
43- *राजपुरोहित नारायणदास पालीवाल के 2 पुत्र*
44- *किशनदास मेड़तिया*
45- *सुन्दरदास*
46- *जावला*
47- *प्रताप मेड़तिया राठौड़ (वीरमदेव के पुत्र व वीरवर जयमल राठौड़ के भाई)*
48- *बदनोर के कूंपा राठौड़ (वीरवर जयमल राठौड़ के पुत्र)*
49- *राव नृसिंह अखैराजोत (पाली के अखैराज के पुत्र)*
50- *प्रयागदास भाखरोत*
51- *मानसिंह*
52- *मेघराज*
53- *खेमकरण*
54- *भगवानदास राठौड़ (केलवा के ईश्वरदास राठौड़ के पुत्र)*
55- *नन्दा पडियार*
56- *पडियार सेडू*
57- *साँडू पडियार*
58- *अचलदास चुण्डावत*
59- *रावत खेतसिंह चुण्डावत के पुत्र*
60- *राजराणा झाला मान/झाला बींदा*
61- *बागड़ के ठाकुर नाथुसिंह मेड़तिया*
61- *देलवाड़ा के मानसिंह झाला*
62- *सरदारगढ़ के ठाकुर भीमसिंह डोडिया*
63- *सरदारगढ़ के कुंवर हम्मीर सिंह डोडिया (ठाकुर भीमसिंह के पुत्र)*
64- *सरदारगढ़ के कुंवर गोविन्द सिंह डोडिया (ठाकुर भीमसिंह के पुत्र)*
65- *सरदारगढ़ के ठाकुर भीमसिंह डोडिया के 2 भाई*
66- *पठान हाकिम खां सूर (शेरशाह सूरी के वंशज, मायरा स्थित शस्त्रागार के प्रमुख व मेवाड़ के सेनापति)*
67- *मोहम्मद खान पठान*
68- *जसवन्त सिंह*
69- *कोठारिया के राव चौहान पूर्बिया*
70- *रामदास चौहान*
71- *राजा संग्रामसिंह चौहान*
72- *विजयराज चौहान*
73- *राव दलपत चौहान*
74- *दुर्गादास चौहान (परबत सिंह पूर्बिया के पुत्र)*
75- *दूरस चौहान (परबत सिंह पूर्बिया के पुत्र)*
76- *सांभर के राव शेखा चौहान*
77- *हरिदास चौहान*
78- *बेदला के भगवानदास चौहान (राव ईश्वरदास के पुत्र)*
79- *शूरसिंह चौहान*
80- *रामलाल*
81- *कल्याणचन्द मिश्र*
82- *प्रतापगढ़ के कुंवर कमल सिंह*
83- *धमोतर के ठाकुर कांधल जी :- देवलिया महारावत बीका ने अपने भतीजे ठाकुर कांधल जी को हल्दीघाटी युद्ध में लड़ने भेजा था |*
84- *अभयचन्द बोगसा चारण*
85- *खिड़िया चारण*
86- *रामसिंह चुण्डावत (सलूम्बर रावत कृष्णदास चुण्डावत के भाई)*
87- *प्रतापसिंह चुण्डावत (सलूम्बर रावत कृष्णदास चुण्डावत के भाई)*
88- *गवारड़ी (रेलमगरा) के मेनारिया ब्राह्मण कल्याण जी पाणेरी*
89- *श्रीमाली ब्राह्मण :- इनके पीछे इनकी एक पत्नी सती हुईं | रक्त तलाई (खमनौर) में इन सती माता का स्थान अब तक मौजूद है |*
90- *कीर्तिसिंह राठौड़*
91- *जालमसिंह राठौड़*
92- *आलमसिंह राठौड़*
93- *भवानीसिंह राठौड़*
94- *अमानीसिंह राठौड़*
95- *रामसिंह राठौड़*
96- *दुर्गादास राठौड़*
97- *कानियागर के मानसिंह राठौड़*
98- *राघवदास*
99- *गोपालदास सिसोदिया*
100- *मानसिंह सिसोदिया*
101- *राजा विट्ठलदास*
102- *भाऊ*
103- *पुरोहित जगन्नाथ*
104- *पडियार कल्याण*
105- *महता जयमल बच्छावत*
106- *महता रतनचन्द खेमावत*
107- *महासहानी जगन्नाथ*
108- *पुरोहित गोपीनाथ*
109- *बिजौलिया के राव मामरख पंवार (महाराणा प्रताप के ससुर व महारानी अजबदे बाई के पिता)*
110- *बिजौलिया के कुंवर डूंगरसिंह पंवार (महारानी अजबदे बाई के भाई)*
111- *बिजौलिया के कुंवर पहाडसिंह पंवार (महारानी अजबदे बाई के भाई)*
112- *ताराचन्द पंवार (खडा पंवार के पुत्र)*
113- *सूरज पंवार (खडा पंवार के पुत्र)*
114- *वीरमदेव पंवार*
115- *राठौड़ साईंदास पंचायनोत जेतमालोत (कल्ला राठौड़ के पुत्र) :- ये अपने 13 साथियों समेत काम आए |*
116- *मेघा खावडिया (राठौड़ साईंदास के साथी)*
117- *सिंधल बागा (राठौड़ साईंदास के साथी)*
118- *दुर्गा चौहान (राठौड़ साईंदास के साथी)*
119- *वागडिया (राठौड़ साईंदास के साथी)*
120- *जयमल (राठौड़ साईंदास के साथी)*
121- *नागराज*
(कॉपी-पेस्ट की स्थिति में लेखक का नाम जरूर लिखें)
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