बौद्ध विशेषकर नवबौद्ध हिंदुओं के पाखण्डों का मजाक उड़ाते मिलते हैं परंतु अपने मत की हास्यास्पद एवं अवैज्ञानिक मान्यताओं पर आँखें मूँद लेते हैं।
बौद्ध मानते है कि महाबोधि मंदिर में एक पीपल का वृक्ष है, जिसके नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।
कहा जाता है कि सम्राट अशोक की एक वैश्य रानी तिष्यरक्षिता ने चोरी-छुपे कटवा दिया था। यह बोधिवृक्ष को कटवाने का सबसे पहला प्रयास था। रानी ने यह काम उस वक्त किया जब सम्राट अशोक दूसरे प्रदेशों की यात्रा पर गए हुए थे।
मान्यताओं के अनुसार रानी का यह प्रयास विफल साबित हुआ और बोधिवृक्ष नष्ट नहीं हुआ। कुछ ही सालों बाद बोधिवृक्ष की जड़ से एक नया वृक्ष उगकर आया, उसे दूसरी पीढ़ी का वृक्ष माना जाता है, जो तकरीबन 800 सालों तक रहा।
दूसरी बार इस पेड़ को बंगाल के राजा शशांक ने बोधिवृक्ष को जड़ से ही उखड़ने की ठानी। लेकिन वे इसमें असफल रहे। कहते हैं कि जब इसकी जड़ें नहीं निकली तो राजा शशांक ने बोधिवृक्ष को कटवा दिया और इसकी जड़ों में आग लगवा दी। लेकिन जड़ें पूरी तरह नष्ट नहीं हो पाईं। कुछ सालों बाद इसी जड़ से तीसरी पीढ़ी का बोधिवृक्ष निकला, जो तकरीबन 1250 साल तक मौजूद रहा।
तीसरी बार बोधिवृक्ष साल 1876 प्राकृतिक आपदा के चलते नष्ट हो गया। उस समय लार्ड कानिंघम ने 1880 में श्रीलंका के अनुराधापुरम से बोधिवृक्ष की शाखा मांगवाकर इसे बोधगया में फिर से स्थापित कराया। यह इस पीढ़ी का चौथा बोधिवृक्ष है ।
लेकिन क्या यह वैज्ञानिक है ? क्या इसमें तर्क है ?
यदि इस प्रकार वृक्ष के नीचे बिना गुरु के ज्ञान मिलने लगे तो गुरु और विद्यालय तो महत्वहीन हो जाएंगे।
फिर भारत सरकार क्यों लाखो करोड़ रुपये शिक्षा पर खर्च कर रही है ? क्यों न बोधि वृक्ष के नीचे ही सबको ज्ञानी बना दिया जाय ?
वृक्ष के नीचे ज्ञान होना होता तो वनवासी कब के ज्ञानी हो चुके होते। कहीं किसी विद्यालय और शिक्षण संस्थाओं की आवश्यकता न होती।
तर्क करें। बुद्धि का उपयोग करें। मूर्खों की तरह व्यवहार न करें।
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