अरब लुटेरों का पहला आक्रमण और हिन्दू राजा दाहिर
राजा दाहिर सिंध के सैन राजवंश के अंतिम राजा थे। वह अत्यंत प्रतापी , वीर , शौर्य सम्पन्न और देशभक्त शासक थे। उनके बारे में विदेशी इतिहासकारों ने बहुत कुछ गलत लिखा है। उसका कारण केवल यही है कि वह विदेशी लेखक और उनके राजनीतिक संरक्षक इस महान देशभक्त राजा के पौरुष से ईर्ष्या करते थे। अतः उन्होंने घृणावश ऐसा लिखा है। जिससे कि वह एक क्रूर और आततायी राजा के रूप में दिखाई दे।
जबकि सच्चाई यह है कि राजा दाहिर ने विदेशी आक्रमणकारियों के आक्रमण का बहुत ही वीरता के साथ सामना किया।
अरबों का आक्रमण तो स्मरण किया।
दाहिर सेन वीर क्यों विस्मरण किया।
क्या बलिदानी रक्त सुर्ख नहीं होता है।
यदि हाँ, तो शत्रु को भारत क्यों ढोता है।
उसने भारत के अन्य राजाओं से किसी प्रकार की सहायता की याचना नहीं की और न ही इस बात की प्रतीक्षा की कि वे उसकी सहायता के लिए सेना लेकर आएं। जैसे ही उसे यह सूचना मिली कि विदेशी आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम भारत की सीमाओं की ओर बढ़ा चला आ रहा है, वह तुरंत दहाड़ते हुए शेर की भांति शत्रु दल पर टूट पड़ा। महाराजा दाहिर की सेना में गुर्जर सैनिकों तथा सेनापति मानू गुर्जर की उपस्थिति का उल्लेख भी मिलता है। जिसने देवल (कराची) की बन्दरगाह में अरब के समुद्री जहाजों के उन नागरिकों को मारकर सामान लूट लिया था जो वहाँ की सिंधी हिन्दू स्त्रियों का अपहरण करके ले जाना चाहते थे। बाद में वही मानू गुर्जर महाराजा दाहिर का प्रधान सेनापति बना था। निस्संदेह आज सिन्ध का वह क्षेत्र भारत का एक अंग नहीं है, परन्तु इतिहास का वह कालखण्ड तो सृष्टि पर्यंत भारत का एक अंग रहेगा। ऐसे में उस सत्य घटना का समावेश कर अपने मानू देव गुर्जर सेनापति को भावपूर्ण श्रद्धांजलि तब तक नहीं दी जा सकती जब तक उस घटना का विस्तृत विवरण इतिहास में एक प्रेरक प्रसंग के रूप में दर्ज नहीं हो जाता है।
भारत के मन्दिरों में भरे खजानों के प्रति अरब के लुटेरों का लालच बना रहता था। अपने शासनकाल में राजा दाहिर ने अनेक बार अरब लुटेरों के आक्रमणों को रोका। उनके समय में ही अरबों ने सर्वप्रथम भारत (सिंध) पर आक्रमण किया था। राजा दाहिर के अंतिम युद्ध से पहले के युद्धों का कोई उल्लेख जानबूझकर नहीं किया जाता, क्योंकि पहले किए गए उन युद्धों में राजा दाहिर ने अरबों को हरा दिया था।
कई बार हारने के बाद अरबियों ने मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में 712 में सिंध पर आक्रमण किया था। माना जाता है कि दाहिर की सेना में यह अंधविश्वास था कि जब तक मन्दिर की ध्वजा लगी रहेगी तब तक उनकी सेना अजेय रहेगी। शुरू में कई बार पिटने के बाद मोहम्मद बिन कासिम ने मन्दिर के पुजारी को खरीद लिया। उसने राज खोल दिया और कासिम ने मन्दिर की ध्वजा गिरवा दी। यह देख कर दाहिर की सेना का उत्साह जाता रहा और जीता हुआ युद्ध हार में बदल गया।
राजा दाहिर का शासन काल 663 से 712 ई0 तक माना जाता है। उन्होंने अपने शासनकाल में अपने सिंध प्रान्त को बहुत ही सशक्त बनाया। युद्ध का परिणाम चाहे जो रहा हो, लेकिन वर्तमान भारत उनके उपकारों का ऋणी है, क्योंकि उनका सारा जीवन ही देशभक्ति से ओतप्रोत और देश सेवा के लिए समर्पित रहा।
20 जून को उनके बलिदान दिवस पर शत शत नमन
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