प्रभु के दर्शन के बाद मंदिर की पैड़ी या ऑटले पर क्यूं बैठना चाहिए 🛕📿
बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पैड़ी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठना चाहिए।
क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?
यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई। वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर हमें एक श्लोक बोलना चाहिए।
यह श्लोक इस प्रकार है -
*"अनायासेन मरणम् बिना दैन्येन जीवनम्"*
इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार है:–
✨अनायासेन मरणम् ...
अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो
और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो। चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।
✨बिना देन्येन जीवनम् ...
अर्थात परवशता का जीवन ना हो
मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो ।
ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके।
✨देहांते तव सानिध्यम ...
अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले।
✨देहि में परमेशवरम् ...
हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।
यह प्रार्थना है, याचना नहीं है ।
मंदिर में जाकर सांसारिक पदार्थों की याचना ना करे, जैसे घर, व्यापार, नौकरी पुत्र–पुत्री, सांसारिक सुख, धन आदि ... यह तो भगवान आप की पात्रता के अनुसार खुद ही आपको देते हैं।
बल्कि जब भी मंदिर में दर्शन करने जाये तो ...
खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए। उनके दर्शन करना चाहिए।
दर्शन करिए, भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, श्रृंगार का।
आंखों में भर ले वह सुंदर स्वरूप ...
दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं, उस स्वरूप का ध्यान करें ...
मंदिर में नेत्र नहीं बंद करने है।
बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर
जब प्रभु का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें
और अगर प्रभु का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और भगवान का दर्शन करें ।
नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।
#अतुल्य_भारत
#सनातन_संस्कृति
#सनातन_धर्म_ही_सर्वश्रेष्ठ_है
Jay Gurudev 🙏
No comments:
Post a Comment
Your Comments Here...