महान_वीरांगना_झलकारी बाई
वीरांगना_झलकारी_बाई कोली का जन्म झांसी से लगभग 4 कोस दूर भोजला गांव में 22 नवंबर 1830 मूलचंद कोरी सदोवा एवं माता जमुना (जुम्मन) के यहां हुआ !
ईस्ट इंडिया कंपनी अपने छल कपट एवं कुटिल नीतियों से भारत के सभी राज्यों को अपने साथ मिलाती जा रही थी...!
लेकिन जब अंग्रेजों के कदम झांसी पहुंचने लगे तो झांसी के रण बाउकुरो के सीने में अंग्रेजी सेना के खिलाफ आग झलक ने लगी !
एक और अंग्रेज भारत में अपनी स्थिति मजबूत करते जा रहे थे उधर भोजला गांव में इतिहास अपने नए पन्नों को लिखने की तैयारी कर रहा था क्योंकि झलकारी बाई धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी वह खेल खेलने की उम्र में तीर, तलवार, भालो के साथ जंगलों में हथियारों से खेलते हुए देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना को पल-पल मजबूत कर रही थी..!
इसी प्रकार व शस्त्र विद्या सीखने में विकसित होती गई उधर ईस्ट इंडिया कंपनी का अत्याचार दिन-प्रतिदिन कोरी समाज पर बढ़ता जा रहा था.!
जिसका झलकारी बाई के पिता ने पुरजोर विरोध किया और कोरी समाज को साथ लेकर संघर्ष करना शुरू कर दिया जिसका एक आंदोलन खड़ा हो गया इस आंदोलन में 60000 से ज्यादा किसानों कोरी समाज के लोगों ने भाग लिया..!
फिरंगीयो को यह मित्री भाव रास नहीं आया जिसके चलते अंग्रेजों ने सीधे-सीधे स्वदेशी बुनकरो तथा किसानों पर पूर्णत प्रतिबंध लगा दिया जिसका सीधा मतलब था कृषि और बुनकर व्यवसाय तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर चोट कर उसे कुचल देना.!
इस चोट से फिरंगीयो ने बुनकरो और किसानों की आर्थिक अर्थव्यवस्था के मूल ढांचे को ही नष्ट कर दिया
उधर रजवाड़ों रियासतों के नवाब जागीरदार भी अंग्रेजी हुकूमत के गौरव गान में मशगूल हो गए थे..!
ऐसे स्वदेशी गुलामों की देशभर में बड़ी जमात थी
उधर अंग्रेजी सेना झांसी की तरफ जाती देख झलकारी ने एक बाबा से पूछा...?
अंग्रेजी सेना झांसी क्यों जा रही है
बाबा ने उत्तर दिया... झांसी का संतुलन बिगड़ने वह देश के भाग्य को ग्रहण लगाने को ...
इस पर सदोवा व जमुना (जुम्मन) देवी ने बाबा से पूछ लिया कि बाबा गोरे फिरंगीयों की नजर अब झांसी पर है क्या..?
बाबा ने कहा हां मंसूबे ठीक नहीं लगते...
बाबा ने कहा तुम्हारी पुत्री बहुत की ज्ञाता है और बहादुर है यह अवश्य एक दिन महान कार्य करेगी और इतिहास रचेगी झांसी का गौरव बनेगी..!
आखिरकार एक दिन झलकारी बाई की मुलाकात रानी लक्ष्मीबाई से हुई गंगाधर राव की मृत्यु के बाद उसके दस्तक पुत्र को अंग्रेजों ने झांसी का वारिस मानने से इनकार करते हुए रानी लक्ष्मीबाई को युद्ध की चुनौती दे डाली..
आखिर वह है दिन आ गया जिसका झलकारी बाई का बरसों से इंतजार था...
10 मई 1857 के दिन क्रांतिकारियों द्वारा मेरठ से भड़की विद्रोह की चिंगारी फूट पड़ी जो पूरे भारत और उसकी सीमाओं से सटे अनेक प्रांतों को सुलगाती हुई झांसी आ पहुंची..!
झांसी में रण की आंच से कई राज्यों में क्रांति की आंधियां बहने लगी इस तरह भारत के कोने कोने में अब क्रांति की चिंगारियां मुंह खोलने लगी...
मेरठ और बैरकपुर छावनी की क्रांति और झांसी में बड़की क्रांति को भागते हुए,
एक दिन नानासाहेब, सरदार घोष खां और रानी लक्ष्मीबाई के बीच गुप्त विचार-विमर्श हुआ उसी विचार-विमर्श के अनुसार 4 जून 1857 को झांसी में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की रणभूमि बनी थी..
युद्ध के महासागर में अब दुर्गा दल की कमांडर झलकारी बाई , जांबाज अजीज मुल्ला खां पूरण कोरी व वीर बहादुरभाऊ बख्शी ने इस युद्ध संचालन को अपने हाथों में ले लिया ..!
जिसमें उनके साथ कोरी रेजीमेंट भी शामिल हुई युद्ध छिड़ चुका था उसके सैनिक लश्कर ने फिरंगीयो को पराजित कर दिया..!
जिसके परिणाम स्वरूप झांसी समेत कई रियासतें स्वतंत्र हो गई और झांसी की बागडोर पुणे महारानी लक्ष्मीबाई के हाथों में आ गई थी...
दुर्गा दल की कमांडर झलकारी बाई आज अपनी प्रथम जीत पर उत्साहित थी और शौर्य की स्वामिनी झलकारी बाई का व्यक्तित्व चरम पर था ..!
उधर अंग्रेजों को हार बर्दाश्त नहीं हुई और फिर से झांसी पर संकट के बादल मंडराने लगे और आखिरकार 6 जून 1857 को झांसी में महायुद्ध भड़क उठा जिसमें पूर्ण कोरी, भाऊ बख्शी तथा अन्य दरोगा ने अंग्रेजो के #तलवे_चाटने वाले कोतवाल नीलधर तथा मदार बक्स को बंदी बना लिया और कैप्टन गार्डन तथा कैप्टन डनलव को मार गिराया..!
तथा रानी लक्ष्मीबाई ने शंखनाद कर झलकारी बाई को युद्ध भूमि में उतरने का संकेत दे दिया..!
जैसे ही वीरांगना झलकारी भाई युद्ध में उतरी तो ब्रिगेडियर हयूमरोज स्टुअर्ट को कुछ समझ नहीं आ रहा था जर्नल क्यूरोस की सारी योजनाएं धराशाई हो गई जनरल क्यूरोस समझ गया था कि कुछ गड़बड़ी है
उधर झलकारी ने स्थिति को भांप कर अंग्रेजों की मंशा जान चुकी थी..!
तब झलकारी ने रानी से कहा आप कुंवर दामोदर को साथ लेकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचे,
झलकारी की बात सुनकर रानी लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई की गुप्त मंत्रणा से भंडेरी के कोरियों की फौज के संरक्षण में 200 पठान कुंवर गुल मोहम्मद साथ चल पड़ी, झलकारी ने रानी को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर रानी के लश्कर को अंतिम नमस्कार करते हुए विदा ली और फिर तुरंत मारकाट करते हुए वापस किले में लौट आए,
और वापस आकर महारानी लक्ष्मी बाई की अनुपस्थिति में झलकारी बाई ने महारानी लक्ष्मी बाई का वेश धारण करके निर्भरता से 12 घंटे तक सेना का संचालन करते हुए अंग्रेजों से लड़ती रही..!
***
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कविता में झलकारी बाई की प्रशंसा इसी प्रकार की ..!
जाकर रण में ललकारी थी वह तो झाँसी की झलकारी थी
गोरों से लड़ना सिखा गयी रानी बन जौहर दिखा गयी
है इतिहास में झलक रही वह भारत की सन्नारी थी
मचा झाँसी में घमासान चहुँ ओर मची किलकारी थी
अंग्रेजों से लोहा लेने रण में कूदी झलकारी थी
ऐसी महान वीरांगना झलकारी बाई ने कोली समाज एवं देश नाम इतिहास में अमर कर दीया ऐसी सन्नारी को आज हम उनके जन्मोत्सव पर..! शत-शत नमन करते हैं
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